देश मेरा मुझको प्यारा और यह सबसे निराला,
रोज होते भ्रष्ट कामों से मुखर इसका है काला.
बहती रहती थी जहां पर दूध-दधि की नाद्य धारा
है असंभव अब यहाँ पर बिन मिलावट दूध मिलना.
होता था सोने की चिडया जो कभीं यह विश्व में,
अब यहाँ देखो अजब है स्वर्ण का अद्भुत नज़ारा .
नारी पूजी जाती थी जहां देवियों के वेश में
भ्रूण हत्या होती अब है इस निराले देश में.
विविध बोली, विविध भाषा, विविध रहना, विविध खाना,
विविधता में एकता की हैं मिसालें देश में.
घपले-घोटाले निकलते है यहाँ हर क्षेत्र में
सैन्य क्या, संचार क्या है लिप्त इसमें खेल भी.
त्रस्त रहता, जुर्म सहता, था कभी यह गोरों से,
अपने अब हैं जुर्म करते,क्या. कहें हम औरों को.
बेटे सुधरो, जुर्म छोडो देश अब यह बोलता
हर बुरे कामों का होता अंत दुखकार जान लो.
छोड़ पापों को को अभी तुम, सभ्य जीवन में पधारो ,
आगमन कर लो अभी तुम देश बाहें खोलता.
घपले-घोटाले निकलते है यहाँ हर क्षेत्र में
ReplyDeleteसैन्य क्या, संचार क्या है लिप्त इसमें खेल भी.
त्रस्त रहता, जुर्म सहता, था कभी यह गोरों से,
अपने अब हैं जुर्म करते,क्या. कहें हम औरों को.
हर एक जज्बात और हालात को आपने बहुत खूबसूरती से प्रस्तुत किया है ...आपका आभार मेरे ब्लॉग पर आकर प्रोत्साहित करने के लिए ...आशा है आपका प्रोत्साहन यूँ ही मिलता रहेगा
नारी पूजी जाती थी जहां देवियों के वेश में
ReplyDeleteभ्रूण हत्या होती अब है इस निराले देश में.
....आज की व्यवस्था पर बहुत सटीक टिप्पणी...सार्थक सोच लिये बहुत प्रेरक प्रस्तुति..
satik vyangya hai .......sundar|
ReplyDeleteबेटे सुधरो, जुर्म छोडो देश अब यह बोलता
ReplyDeleteहर बुरे कामों का होता अंत दुखकार जान लो.
छोड़ पापों को को अभी तुम, सभ्य जीवन में पधारो ,
आगमन कर लो अभी तुम देश बाहें खोलता.
बहुत ओजजस्वी लिखा है आपने ! गहरे भाव और अभिव्यक्ति के साथ ज़बरदस्त प्रस्तुति!
अच्छी कविता। आज भी दूध की नदियां बह सकती हैं, शर्त यही है कि हमारे नेता इस नदी पर बांध न बना ले॥
ReplyDeleteओज़स्वी लिखा है ... आज देश को जरूरत है ऐसे जज्बे की ... खड़े हो कर कुछ करने की ..
ReplyDeletebahut badhiya likhaa hai aapne. desh ke haalaat ka sateek chitran, shubhkaamnaayen.
ReplyDeleteअच्छी लगी ये व्यंग्यात्मक रचना !
ReplyDeleteआपने देश की ज्वलंत समस्याओं को अपनी इस रचना का मूल विषय बनाया है। इतने सारे विषय को समेट कर चलना आसान नहीं था। पर आपने इसे संभव कर दिखाया है।
ReplyDeleteसटीक प्रस्तुति.....उम्दा व्यंगात्मक रचना
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना.
ReplyDeleteदेश को आज आप जैसी युवा सोच की जरूरत है.
बेटे सुधरो, जुर्म छोडो देश अब यह बोलता
ReplyDeleteहर बुरे कामों का होता अंत दुखकार जान लो.
छोड़ पापों को को अभी तुम, सभ्य जीवन में पधारो ,
आगमन कर लो अभी तुम देश बाहें खोलता.
sunder rachna, uchit margdarshan liye, achha laga aapko padhna.
shubhkamnayen
नारी पूजी जाती थी जहां देवियों के वेश में
ReplyDeleteभ्रूण हत्या होती अब है इस निराले देश में. ....
Punch lines...
.
बहुत सार्थक सोच ...एवं बेहतरीन व्यंगात्मक प्रस्तुति ....
ReplyDeleteओजपूर्ण ,प्रभावी रचना
ReplyDeletesunder, prabhavi rachna.
ReplyDeleteसुंदर भाव।
ReplyDeleteहकीकत ब्यान करती यह पोस्ट मन को भा गयी .....
ReplyDeleteसार्थक सोच ,बहुत सुन्दर रचना.
ReplyDeleteछोड़ पापों को को अभी तुम, सभ्य जीवन में पधारो ,
ReplyDeleteआगमन कर लो अभी तुम देश बाहें खोलता
bahot achchi baat ki hai.....
भाव पूर्ण आव्हान ..सुन्दर यथार्थ पार्क प्रेरक प्रस्तुति ..
ReplyDeleteनवरात्रि कि हार्दिक शुभ कामनाएं
प्रिय अंकित पाण्डेय जी बहुत सुन्दर रचना ..हर पंक्ति सटीक और प्यारी ...कब ये सुधरेगा देश हमारा एक बड़ा प्रश्न ....
ReplyDeleteबधाई आप को लाजबाब ...
धन्यवाद और आभार ..अपना स्नेह और समर्थन दीजियेगा
भ्रमर ५
घपले-घोटाले निकलते है यहाँ हर क्षेत्र में
सैन्य क्या, संचार क्या है लिप्त इसमें खेल भी.
त्रस्त रहता, जुर्म सहता, था कभी यह गोरों से,
अपने अब हैं जुर्म करते,क्या. कहें हम औरों को.
आप सब को विजयदशमी पर्व शुभ एवं मंगलमय हो।
ReplyDeleteनारी पूजी जाती थी जहां देवियों के वेश में
ReplyDeleteभ्रूण हत्या होती अब है इस निराले देश में.
विविध बोली, विविध भाषा, विविध रहना, विविध खाना,
विविधता में एकता की हैं मिसालें देश में.
bahut kuch ho sakta hai is desh me abhi bhi...
jai hind jai bharat