भरे घट, मेघ का सावन में आना क्या सुहाना है,
ये शीतल मंद झोंकों का समां भी क्या सुहाना है.
पपीहा, दादुरों के वाद्य के संग कोकिला के स्वर,
ये रिमझिम मेह की बूँदें, ये मौसम आशिकाना है.
तपी धरती खिली फिर से, तपन से भी मिली राहत,
ये बारिश में बहकना और नहाना, क्या सुहाना है.
सजी मेहँदी,खिले गजरे,सजे झूमर, बजे पायल,
वो गोरी के दमकते भाल की बिंदिया करे घायल.
गगन को चूमती पेंगों के संग-संग गीत सावन के ,
ये झूलों पर लहरती चूनरों का रंग सुहाना है.
ये पोखर झील नदियाँ, ताल भी गाते दिखें फिर से,
ये सबकी चाह सावन मेघ बरसे, झूम के बरसे.
ये धानी ओढ़ चूनर स्वागतम कहती फिज़ा सारी,
प्रकृति से वर्षा रानी का मिलन ये क्या सुहाना है.