धमाकों की कभी आहट नहीं होती
बेगुनाहों, मासूमों की यूँ जान न जाती
अगर मज़हब के नाम पर ये दुनिया बांटी नहीं जाती.
सड़क पर खून से लथपथ पड़ी लाशें नहीं होतीं
दुखों से भरी तनहा रातें नहीं होतीं
न खोता कोई अपनी आँख का तारा
तबाही गर किसी की चाहत नहीं होती .
तबाही गर किसी की चाहत नहीं होती .
मन में द्वेष, रंजिश की भावना नहीं होती
न लोग बंटते और न ये जातियां होती
भाईचारे के दीप जलते हर घर की चौखट पे
तबाही गर किसी की चाहत नहीं होती .
दुनिया आज दुखों से आहात नहीं होती
मासूमों की जिंदगी बेसहारा नहीं होती
खुशी से झूमते और प्यार से रहते हम सभी
तबाही गर किसी की चाहत नहीं होती .