Thursday 25 August 2011

तबाही

तबाही गर किसी की चाहत नहीं होती
धमाकों की कभी आहट नहीं होती
बेगुनाहों, मासूमों की यूँ जान न जाती
अगर मज़हब के नाम पर ये दुनिया बांटी नहीं जाती.

सड़क पर खून से लथपथ पड़ी लाशें नहीं होतीं
दुखों से भरी तनहा रातें नहीं होतीं
न खोता कोई अपनी आँख का तारा
तबाही गर किसी की चाहत नहीं होती .

मन में द्वेष, रंजिश की भावना नहीं होती
न लोग बंटते और न ये जातियां होती
भाईचारे के दीप जलते हर घर की चौखट पे
तबाही गर किसी की चाहत नहीं होती .

दुनिया आज दुखों से आहात नहीं होती
मासूमों की जिंदगी बेसहारा नहीं होती 
खुशी से झूमते और प्यार से रहते हम सभी
तबाही गर किसी की चाहत नहीं होती .


Thursday 11 August 2011

कफ़न तक नोच डालेंगे

सितमगर से सितमगर की तरह ही वास्ता रखिये 
बिठाओ मत इन्हें सिर पर ये  गर्दन काट डालेंगे.

डसाते कब तलक खुद को रहोगे इन दरिंदों से
खुद अपनी आस्तीनों में कब तलक नाग पालोगे .

समझ आता नहीं क्योंकर इन्हें रहबर समझते हो
हज़ारों बार जो खुद से तुम्हीं ने आजमाए हैं.

तुम्हारे ही लहू से सींच कर इनके बगीचों में
बहारें हैं गुलों पर और पौधे लहलहाए हैं.

सियासतबाज धोखे हैं, ये हैं लाशों के सौदागर 
तुम्हारा ये लहू क्या जिस्म तक भी बेंच डालेंगे.

जो घडियाली बहा आंसू अभी हमदर्द बनते हैं
वो कुर्सी पर पहुँचते ही कफ़न तक नोच डालेंगे.