Thursday 11 August 2011

कफ़न तक नोच डालेंगे

सितमगर से सितमगर की तरह ही वास्ता रखिये 
बिठाओ मत इन्हें सिर पर ये  गर्दन काट डालेंगे.

डसाते कब तलक खुद को रहोगे इन दरिंदों से
खुद अपनी आस्तीनों में कब तलक नाग पालोगे .

समझ आता नहीं क्योंकर इन्हें रहबर समझते हो
हज़ारों बार जो खुद से तुम्हीं ने आजमाए हैं.

तुम्हारे ही लहू से सींच कर इनके बगीचों में
बहारें हैं गुलों पर और पौधे लहलहाए हैं.

सियासतबाज धोखे हैं, ये हैं लाशों के सौदागर 
तुम्हारा ये लहू क्या जिस्म तक भी बेंच डालेंगे.

जो घडियाली बहा आंसू अभी हमदर्द बनते हैं
वो कुर्सी पर पहुँचते ही कफ़न तक नोच डालेंगे.

13 comments:

  1. sargarbhit aur yatharth ko darshatee rachana.

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  2. सियासतबाज धोखे हैं, ये हैं लाशों के सौदागर
    तुम्हारा ये लहू क्या जिस्म तक भी बेंच डालेंगे.

    सटीक लिखा है ..अच्छी गज़ल

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  3. आज हालात तो यही हैं...... सटीक पंक्तियाँ रची हैं

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  4. अंकित जी गहरी फूंक भरी कविता !

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  5. Usi kafan se apna bhi kaam chala lenge. achchha likha hai ..

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  6. वर्तमान की सच्चाई निहित है आपकी इस रचना में....

    स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं.

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  7. जो घडियाली बहा आंसू अभी हमदर्द बनते हैं
    वो कुर्सी पर पहुँचते ही कफ़न तक नोच डालेंगे.

    सही - सही कह दिया आपने इन सियासत वालों की वास्तविकता को अपने सही शब्दों में उजागर कर दिया आपका आभार

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  8. स्वाधीनता दिवस की हार्दिक मंगलकामनाएं।

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  9. सियासतबाज धोखे हैं, ये हैं लाशों के सौदागर
    तुम्हारा ये लहू क्या जिस्म तक भी बेंच डालेंगे.
    जो घडियाली बहा आंसू अभी हमदर्द बनते हैं
    वो कुर्सी पर पहुँचते ही कफ़न तक नोच डालेंगे.
    ..बहुत बढ़िया सामयिक रचना प्रस्तुति के लिए आभार!

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  10. हमारे ब्लॉग पर आने का और हौसला बढ़ने का तहेदिल से शुक्रिया..........आपके ब्लॉग पर आकर अच्छा लगा......बहुत अच्छा लिखा है आपने....

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  11. वर्तमान की सच्चाई बहुत बढ़िया

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  12. सत्य को पूरी निष्ठा से अंकित किया है!

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