भरे घट, मेघ का सावन में आना क्या सुहाना है,
ये शीतल मंद झोंकों का समां भी क्या सुहाना है.
पपीहा, दादुरों के वाद्य के संग कोकिला के स्वर,
ये रिमझिम मेह की बूँदें, ये मौसम आशिकाना है.
तपी धरती खिली फिर से, तपन से भी मिली राहत,
ये बारिश में बहकना और नहाना, क्या सुहाना है.
सजी मेहँदी,खिले गजरे,सजे झूमर, बजे पायल,
वो गोरी के दमकते भाल की बिंदिया करे घायल.
गगन को चूमती पेंगों के संग-संग गीत सावन के ,
ये झूलों पर लहरती चूनरों का रंग सुहाना है.
ये पोखर झील नदियाँ, ताल भी गाते दिखें फिर से,
ये सबकी चाह सावन मेघ बरसे, झूम के बरसे.
ये धानी ओढ़ चूनर स्वागतम कहती फिज़ा सारी,
प्रकृति से वर्षा रानी का मिलन ये क्या सुहाना है.
सुन्दर रचना , लिखते रहिये
ReplyDeleteअहा-हा!
ReplyDeleteक्या सरस गीत है। पूरे लय और प्रवाह के साथ इस गीत को गाने का-सा आनंद मिला।
मौसम की छटा का सुंदर चित्रण .... बहुत बढ़िया
ReplyDeleteबहुत सुन्दर गीत .. प्रक्रति की सुन्दर छटा का दृश्य दिख गया
ReplyDeleteBahut sundar chitran kiya hai . aapko shubhkamna
ReplyDeleteये पोखर झील नदियाँ, ताल भी गाते दिखें फिर से,
ReplyDeleteये सबकी चाह सावन मेघ बरसे, झूम के बरसे.
ये धानी ओढ़ चूनर स्वागतम कहती फिज़ा सारी,
प्रकृति से वर्षा रानी का मिलन ये क्या सुहाना है.
..प्रक्रति का मनोहारी सावनी रचना प्रस्तुति के लिए धन्यवाद..
हार्दिक शुभकामनायें ...
रचना बहुत सुंदर है...स्वागत!
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