Sunday 27 April 2014

बहारें फिर से आएँगी,
जहां ये मुस्कुराएगा.
दुखों की रात जाएगी,
नया सूरज फिर आएगा .

टूटना भी मत कभी तुम
हार से,फटकार से
बस करो मेहनत लगन से
बहारें फिर से आएँगी
जहां ये मुस्कुराएगा.









तेरी यादों का नशा अजीब होता है
तेरी बातों का नशा अजीब होता है
तेरी यादों के बिना मै  रह भी न पाऊं
ये मेरा दिल समझता है , ये मेरा दिल समझता है 

Tuesday 11 October 2011

प्यारी मां

रखा था जब कदम, इस मातृभूमि  पर
मुझको पता नहीं कुछ, अनजान की तरह.

दे सीख आत्मसम्मान और प्यार की
रहना मुझे सिखा दिया, इंसान की तरह.

खुद भूखे पेट सोई, तृप्त मेरी भूख की
सब कुछ लूटा दिया, भगवान् की तरह.

जब किसी ने दर्द तनिक सा मुझे दिया
तुम लड़ गई उसी दम, तलवार की तरह.

थे अच्छे कर्म हमने किये पिछले जन्म में
मिल गई मुझे तुम उपहार की तरह.

कैसे मैं तुझको छोड़ दूं, गंम्भीर भंवर में
पार मैं लगाऊंगा, मल्लाह की तरह.

मां दर्द, कष्ट, ताने कितने सही हो मेरे लिए
बसती हो मेरे दिल में तुम भगवन की तरह.

कैसे चुकाऊ ऋण मैं तेरे लाड, प्यार का 
हैं तेरे कष्ट मुझपे आभार की तरह.

रस्ता मुझे आता है नज़र मात्र एक बस 
दूँ तुझको प्यार और सम्मान, राम की तरह. 

Saturday 10 September 2011

मेरा भारत

देश मेरा मुझको प्यारा और यह सबसे निराला,
रोज होते भ्रष्ट कामों से मुखर इसका है काला.

बहती रहती थी जहां पर दूध-दधि की नाद्य धारा
है असंभव अब यहाँ पर बिन मिलावट दूध मिलना. 
होता था सोने की चिडया जो कभीं यह विश्व में,
अब यहाँ  देखो अजब है स्वर्ण का अद्भुत नज़ारा .

नारी पूजी जाती थी  जहां देवियों के वेश में
भ्रूण हत्या होती अब है इस निराले देश में.
विविध बोली, विविध भाषा, विविध रहना, विविध खाना,
विविधता में एकता की हैं मिसालें देश में.

घपले-घोटाले निकलते है यहाँ हर क्षेत्र में 
सैन्य क्या, संचार क्या है लिप्त इसमें खेल भी.
त्रस्त रहता, जुर्म सहता, था कभी यह गोरों से,
अपने अब हैं जुर्म करते,क्या. कहें हम औरों को.

बेटे सुधरो, जुर्म छोडो  देश अब यह बोलता
हर बुरे कामों का होता अंत दुखकार जान लो.
छोड़ पापों को को अभी तुम, सभ्य जीवन में पधारो ,
आगमन कर लो अभी तुम देश बाहें खोलता.

Thursday 25 August 2011

तबाही

तबाही गर किसी की चाहत नहीं होती
धमाकों की कभी आहट नहीं होती
बेगुनाहों, मासूमों की यूँ जान न जाती
अगर मज़हब के नाम पर ये दुनिया बांटी नहीं जाती.

सड़क पर खून से लथपथ पड़ी लाशें नहीं होतीं
दुखों से भरी तनहा रातें नहीं होतीं
न खोता कोई अपनी आँख का तारा
तबाही गर किसी की चाहत नहीं होती .

मन में द्वेष, रंजिश की भावना नहीं होती
न लोग बंटते और न ये जातियां होती
भाईचारे के दीप जलते हर घर की चौखट पे
तबाही गर किसी की चाहत नहीं होती .

दुनिया आज दुखों से आहात नहीं होती
मासूमों की जिंदगी बेसहारा नहीं होती 
खुशी से झूमते और प्यार से रहते हम सभी
तबाही गर किसी की चाहत नहीं होती .


Thursday 11 August 2011

कफ़न तक नोच डालेंगे

सितमगर से सितमगर की तरह ही वास्ता रखिये 
बिठाओ मत इन्हें सिर पर ये  गर्दन काट डालेंगे.

डसाते कब तलक खुद को रहोगे इन दरिंदों से
खुद अपनी आस्तीनों में कब तलक नाग पालोगे .

समझ आता नहीं क्योंकर इन्हें रहबर समझते हो
हज़ारों बार जो खुद से तुम्हीं ने आजमाए हैं.

तुम्हारे ही लहू से सींच कर इनके बगीचों में
बहारें हैं गुलों पर और पौधे लहलहाए हैं.

सियासतबाज धोखे हैं, ये हैं लाशों के सौदागर 
तुम्हारा ये लहू क्या जिस्म तक भी बेंच डालेंगे.

जो घडियाली बहा आंसू अभी हमदर्द बनते हैं
वो कुर्सी पर पहुँचते ही कफ़न तक नोच डालेंगे.

Tuesday 26 July 2011

समां भी क्या सुहाना है.

भरे घट, मेघ का सावन में आना क्या सुहाना है,
ये शीतल मंद झोंकों का समां भी क्या सुहाना है.

पपीहा, दादुरों के वाद्य के संग कोकिला के स्वर, 
ये रिमझिम मेह की बूँदें, ये मौसम आशिकाना है.
तपी धरती खिली  फिर से, तपन से भी मिली राहत,
ये बारिश में बहकना और नहाना, क्या सुहाना है.

सजी मेहँदी,खिले गजरे,सजे झूमर, बजे पायल, 
वो गोरी के दमकते भाल की बिंदिया करे घायल.
गगन को चूमती पेंगों के संग-संग गीत सावन के ,
ये झूलों पर लहरती चूनरों का रंग सुहाना है.

ये पोखर झील नदियाँ, ताल भी गाते दिखें फिर से,
ये सबकी चाह सावन मेघ बरसे, झूम के बरसे. 
ये धानी ओढ़  चूनर स्वागतम कहती फिज़ा सारी,
प्रकृति से वर्षा रानी का मिलन ये क्या सुहाना है.