Saturday 10 September 2011

मेरा भारत

देश मेरा मुझको प्यारा और यह सबसे निराला,
रोज होते भ्रष्ट कामों से मुखर इसका है काला.

बहती रहती थी जहां पर दूध-दधि की नाद्य धारा
है असंभव अब यहाँ पर बिन मिलावट दूध मिलना. 
होता था सोने की चिडया जो कभीं यह विश्व में,
अब यहाँ  देखो अजब है स्वर्ण का अद्भुत नज़ारा .

नारी पूजी जाती थी  जहां देवियों के वेश में
भ्रूण हत्या होती अब है इस निराले देश में.
विविध बोली, विविध भाषा, विविध रहना, विविध खाना,
विविधता में एकता की हैं मिसालें देश में.

घपले-घोटाले निकलते है यहाँ हर क्षेत्र में 
सैन्य क्या, संचार क्या है लिप्त इसमें खेल भी.
त्रस्त रहता, जुर्म सहता, था कभी यह गोरों से,
अपने अब हैं जुर्म करते,क्या. कहें हम औरों को.

बेटे सुधरो, जुर्म छोडो  देश अब यह बोलता
हर बुरे कामों का होता अंत दुखकार जान लो.
छोड़ पापों को को अभी तुम, सभ्य जीवन में पधारो ,
आगमन कर लो अभी तुम देश बाहें खोलता.